बिलासपुर, टिकरापाराः- महाराज शिवाजी, महारानी लक्ष्मीबाई, महात्मा गांधी जैसे वीर व महापुरूष ऐसे ही जन्म नहीं लिए इन सभी की माताएं आध्यात्मिक व नैतिक मूल्यों में सशक्त व श्रेष्ठ थीं। श्रेष्ठ संस्कारों की शिक्षा मां के गर्भ से ही शुरू हो जाती है। महिला सशक्तिकरण से पहले हमें स्वयं को व परिवार को सशक्त बनाना होगा तब ही हम अपने बच्चों को संस्कारित व सशक्त बना सकेंगे। आज बच्ची या कोई भी नारी किसी भी संबंधों में सुरक्षित नहीं है। और रावण ने भी सीता हरण के लिए साधु का ही वेश धरा था। सीता के पतन के तीन कारण बताए जाते हैं इच्छा, अनुमान एवं मर्यादा का उल्लंघन। वनवास से पूर्व सोने के महलों का त्याग किया पर वन में स्वर्ण मृग से आकर्षित हो गई आज के समय में वह स्वर्णमृग है फैशन ज्वेलरी। उसके बाद लक्ष्मण जी के प्रति अनुमान और अंत में मर्यादा रूपी लक्ष्मण रेखा को पार करने पर वह रावण के अधीन हो गई और अशोक वाटिका में शोकाकुल रहीं। फिर भी वहां माता सीता ने तिनके के बल पर अर्थात् पवित्रता व एकव्रता के बल पर रावण को स्पर्श तक करने नहीं दिया। इसलिए आज के समय में स्त्री व पुरूष दोनों का सशक्तिकरण जरूरी है। इसका सबसे श्रेष्ठ माध्यम है आध्यात्म। इसलिए पुरूषोत्तम संगमयुग पर परमात्मा स्वयं अवतरित होकर गीता ज्ञान देते हैं जिसका प्रथम पाठ है – तुम शरीर नहीं, शरीर से अलग चैतन्य शक्ति आत्मा हो। और आत्मा कोई मेल-फीमेल नहीं है। जब हम सभी को आत्मिक भाव से देखेंगे तब किसी के प्रति विकार जागृत नहीं होगा। और महिला के साथ-साथ पूरा समाज सुरक्षित रहेगा। कोई भी दुष्कर्म, अनाचार, पापाचार, भ्रष्टाचार नहीं होगा। महि अर्थात् धरती और ला अर्थात् नियम, इस धरती पर नियम बनाने वाली महिला ही है। मां दुर्गा, काली, संतोषी, लक्ष्मी, सरस्वती आदि सभी देवियां नारी सशक्तिकरण के यादगार हैं या कहें कि साक्षात् उदाहरण हैं। आध्यात्म को अपनाने पर कई बार परिवार, मित्र, संबंधी रूकावट बनते हैं ये हमारे लिए बहुत दुर्भाग्य की बात है। इसलिए सभी ये प्रयास करें कि खुद भी आध्यात्म को दृढ़ता से अपनाएं व इस मार्ग पर चलने वालों का समर्थन करें क्योंकि आध्यात्मिक शक्ति से ही भारत पुनः जगत्गुरू बनेगा।
उक्त विचार पंडित सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय में महिला सशक्तिकरण पर आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी में उपस्थित छात्रों को ‘‘महिला सशक्तिकरण के अवरोध के रूप में परिवार एवं लिंगवाद’ विषय पर संबोधित करते हुए ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्र.कु. मंजू दीदी जी ने दिए। आपने आगे कहा कि आज के समय में बच्चों के केवल बौद्धिक स्तर को बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा है किन्तु सशक्तिकरण के लिए केवल बौद्धिक क्षमता का विकसित होना पर्याप्त नहीं है। उन्हें नैतिक, भावनात्मक व आध्यात्मिक रूप से भी सशक्त बनाना होगा। ब्रह्माकुमारीज़ संस्था प्रमुख 104 वर्षीय दादी जानकी जी का उदाहरण देते हुए आपने बताया कि केवल आध्यात्मिक रूप से सशक्त व्यक्ति का बौद्धिक, नैतिक व भावनात्मक गुणांक स्वतः ही बढ़ जाता है। अपने वक्तव्य के अंत में दीदी ने भ्रूण हत्या पर बंद करने पर आधारित ‘अजन्मी बेटी का मां के नाम पत्र’ पढ़कर सुनाया जिसे सुनकर सभी की आंखें नम हो गईं।
इस सत्र की अध्यक्षता विश्वविद्यालय की कुलपति डॉ. इंदु अनंत कर रहीं थी। इस अवसर पर अन्य वक्ता गुरूघासीदास केन्द्रीय विश्वविद्यालय की डॉ. अनुपमा सक्सेना एवं छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे। इससे पूर्व कार्यक्रम के उद्घाटन अवसर पर श्रीरामकृष्ण आश्रम, राजकोट, गुजरात से पधारे स्वामी निखिलेश्वरानंद जी, सुंदरलाल शर्मा विवि के कुलपति प्रोफेसर बंशगोपाल सिंह जी, हेमचंद यादव विवि दुर्ग की कुलपति डॉ. अरूणा पल्टा अपोलो हॉस्पीटल की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ. रश्मि शर्मा उपस्थित रहे। सभी वक्ताओं को विवि की ओर से स्मृति चिन्ह भेंट किया गया।
प्रति,
भ्राता सम्पादक महोदय,
दैनिक………………………..
बिलासपुर (छ.ग.)
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Source: BK Global News Feed
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