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बिलासपुर, टिकरापाराः- किसी की प्रगति, उन्नति या उद्धार करने के लिए केवल अच्छी वाणी बोल देना बड़ी बात नहीं है। सबके प्रति शुभभावना रखते हुए अपने गुणों से दूसरों को गुणवान बनाना और आगे बढ़ाना यह है फिराकदिल या उदारदिल बनना। ईर्ष्या, घृणा, क्रिटिसाइज, आलोचना करने या ताने मारने वाला उदारदिल नहीं बन सकता। कई बार अपने साथ वाले किसी की प्रषंसा होने पर या किसी जूनियर के सीनियर से आगे निकल जाने पर ईर्ष्या की भावना उत्पन्न हो जाती है जो स्वयं को और दूसरों को भी परेषान करती है। क्रोध व ईर्ष्या दोनों अग्नि की तरह हैं, क्रोध महाअग्नि है लेकिन ईर्ष्या ऐसी ज्वाला है जो मन ही मन उत्पन्न होती है इसमें न दवा काम करती, न आग बुझती, बाहर धुंआ भी नहीं निकलता लेकिन अंदर ही अंदर मनुष्य झुलसता जाता है। घृणा ऐसी विकृति है जो शुभचिंतन करने नहीं देती, न ही शुभचिंतक बनने देती और इस तरह भी है जैसे खुद भी किसी गड्ढे़ में गिरना व दूसरों को भी गिराना। क्रिटिसाइज या आलोचना करना एक प्रकार से चोट पहुंचाने की तरह है यह दूसरों को तब तक याद रहती है जब तक चोट ठीक न हो। कई बार चोट ठीक होने के बाद भी दाग बना रहता है।
ये बातें ब्रह्माकुमारीज़ टिकरापारा सेवाकेन्द्र में आयोजित रविवार स्पेषल क्लास में साधकों को परमात्म महावाक्य सुनाते हुए सेवाकेन्द्र प्रभारी ब्रह्माकुमारी मंजू दीदी जी ने कही। आपने आगे कहा कि संगठन में किसी बात को कह देना सरल होता है लेकिन भुलाना मुष्किल होता है इसलिए अपने मुख से ज्ञान रत्न ही निकालने हैं, तोल-तोल कर बोलना है। संगठन या परिवार की मजबूती के लिए एकता व एकाग्रता आवष्यक है। एकता से ही हर कार्य में सफलता मिलती है।
राष्ट्रीय युवा दिवस पर युवाओं के लिए संदेष सुनाते हुए दीदी ने कहा कि आप जो भी कार्य करते हो उसमें उमंग-उत्साह का समावेष हो। इसलिए किसी भी कार्य की शुरूआत जब होती है तब दृढ़-संकल्प का धागा या कंगन बांधते हैं जो कि अटल प्रतिज्ञा का प्रतीक होता है। साथ ही यह स्लोगन भी याद रखें कि न किसी के लिए समस्या बनेंगे न किसी समस्या को देख डगमग होंगे। स्वयं भी समाधान स्वरूप बनेंगे और दूसरों को भी समाधान स्वरूप बनाएंगे।
प्रति,
भ्राता सम्पादक महोदय,
दैनिक………………………..
बिलासपुर (छ.ग.)
Source: BK Global News Feed
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